Monday 14 December 2009

पेन और बैग रहित

अन्नू आनंद

(उदयपुर, राजस्थान )

दक्षिण राजस्थान के आदिवासी अचंल उदयपुर में स्थित सेंट्रल पब्लिक सीनियर सैकेण्डरी स्कूल (सीपीएम) की सांतवी कक्षा का अजीब नजारा था। कक्षा में मौजूद सभी 40 छात्र अपने-अपने कंप्यूटर पर भूगोल विशय के अध्याय ‘पृथ्वी और चट्टानों’ का अभ्यास कर रहे थे। इस अध्याय की पूरी जानकारी उन्हें कंप्यूटर स्क्रीन पर उपलब्ध थी। सभी छात्र-छात्राएं कंप्यूटर के माऊस से इस अध्याय के हर पहलू को जांचने और समझने में व्यस्त थे। बाहर से आने वाले किसी व्यक्ति को भी यह दृश्य देखकर भम्र होगा कि यह उनकी कंप्यूटर कक्षा चल रही है। लेकिन नहीं ये छात्र गणित से लेकर हिन्दी, सामाजिक ज्ञान जैसे अपने सभी विशय कंप्यूटर पर ही पढ़ते हैं। अन्य कक्षाओं का भी यही दृश्य था। है। नर्सरी के बच्चे भी कंप्यूटर पर उभरती तस्वीरों और आवाज के माध्यम से ए से ऐपल और एन्ट सीख रहे थे। स्क्रीन पर उभरते चित्रों को देखते ही बच्चे जोर से चिल्लाते। 1989 में षुरू हुआ यह 1200 छात्रों वाला पब्लिक स्कूल पहला पेन लेस (पेन रहित) और बैग रहित स्कूल बनने की राह पर है। यहां की प्रिंसीपल और संस्थापक अलका षर्मा ने स्कूल की षुरूआत के साथ ही यह सोचना षुरू कर दिया था कि किस प्रकार वह स्कूल के छात्रों को बस्ते के बोझ और पेन से मुक्ति दिलाए। इसके लिए उन्होंने कंप्यूटर को माध्यम बनाया क्योंकि उन्हे लगा कि आने वाले समय में कंप्यूटरीकृत षिक्षा प्रणाली में बेहद संभावनाएं हैं। इसी सोच ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। सबसे पहले नए साॅफ्टवेयर की मदद से सभी विशयों की विशयवस्तु को साॅफ्ट कापी यानि कंप्यूटर फार्म में बदला गया। किसी भी विशय के हर अध्याय को पहले एलसीडी और प्रोजेक्टर की मदद से पूरी कक्षा को पढ़ाया जाता है। विशय से संबंधित षिक्षक रिकार्डिड आवाज से अध्याय की पूरी जानकारी छात्रों को देते हैं फिर छात्र कंप्यूटर पर उसका अभ्यास करते हैं। होमवर्क और अभ्यास के लिए छात्रों को बारी-बारी घर पर कंप्यूटर भी दिया जाता है। स्कूल के कंप्यूटर विभाग के प्रमुख सुनील बाबेल के मुताबिक स्कूल का तकनीकी स्टाफ ‘करो करो’ जैसे र्कइं साॅफ्टवेयर की मदद से प्रष्नपत्र तैयार करता है। हर प्रष्न को चेक भी कंप्यूटरीकृत तरीके से ही किया जाता है और बच्चों को परिणाम भी तुरंत मिल जाता है। स्कूल की दूसरी से लेकर बारहंवी तक की सभी कक्षाओं के बच्चे स्कूल के इम्तहान कंप्यूटर पर देते है। अलका षर्मा के मुताबिक उनकी यह अभिलाशा है कि बारहंवी की परीक्षा भी कंप्यूटर पर हो लेकिन अभी माता-पिता इसके लिए तैयार नहीं फिर बोर्ड को भी इसके लिए तैयार होना होगा। लेकिन फिलहाल उनके स्कूल की हर कक्षा के 50 प्रतिषत इम्तहान कंप्यूटर पर ही लिए जा रहे हैं षेश 50 प्रतिषत पारंपरिक तरीके से। गत वर्श स्कूल को कंप्यूटर षिक्षा में उत्कृश्ट कार्य के लिए राश्ट्रपति अब्दुल कलाम ने स्कूल की प्रिंसीपल अलका षर्मा को द्वितीय कंप्यूटर उतमत्ता पुरस्कार 2003 प्रदान किया था। श्रीमती षर्मा बताती हैं कि ‘‘पहले जब मैं ‘पेन लेस’ स्कूल की बात करती थी जो लोगों को आष्चर्य होता था लेकिन अब मेरे सपने ने आकार लेना षुरू कर दिया है। इस पुरुस्कार के बाद बच्चों के माता पिता भी उत्साहित हैं और वे भी परीक्षाओं को पूरी तरह कंप्यूटरीकृत करने में साथ दे रहें हैं।’’ स्कूल के अधिकतर बच्चे कंप्यूटर माध्यम से षिक्षा प्राप्त करने से बेहद खुष और संतुश्ट थे। संातवी कक्षा के मयंक स्क्रीन पर चट्टानों के विभिनन आकारों को दिखाते हुए बताते हैं कि इससे किसी भी विशय को हर प्रकार से परखा जा सकता है और इससे अधिक व्यावहारिक जानकारी के साथ अपनी सृजनात्मकता दिखाने की गुंजाइष अधिक रहती हैं। इसी कक्षा की र्कीति जैन के मुताबिक,‘‘हम पाॅवर प्वांइट प्रेसन्टेषन बनाकर किसी भी मुष्किल विशय को सरल बना सकते हैं। अधिक समय तक कंप्यूटर पर कार्य करने वाले सभी बच्चों को यहां प्राणायाम योगा भी सिखाए जाते हैं। इसके अलावा एक्यूपे्रषर की भी सुविधा उपलब्ध है। हर कक्षा में एक कंप्यूटर मोबाइल ट्राली पर रखा गया है जिसे जरूरत के मुताबिक एक स्थान से दूसरे स्थान लेजाया जाता है। स्कूल की ई-लाइब्रेररी और वीडियो लाइब्रेररी में हर विशय से संबंधित जानकारी की अतिरिक्त सीडी उपलब्ध है। जैसा कि प्रिंसीपल का कहना है कि स्कूल पूरी तरह तैयार है अब जरूरत है सरकार से हरी झंडी मिलने का। षिक्षा विभाग की अनुमति के बाद ही हम इसे पूरी तरह कंप्यूटरीकृत बना अतिंम परीक्षाएं भी कंप्यूटर पर ले सकते हैं।

यह लेख ग्रासरूट में प्रकाशित हुआ है

1 comment:

Rajeysha said...

अच्‍छी रि‍पार्ट दी है, धन्‍यवाद।