अन्नू आनंद
राजस्थान के अजमेर जिले के तिहारी गांव की कमला देवी दिखने में किसी भी देहाती महिला से भिन्न नहीं। सिर पर पल्लू; नाक में बड़ी सी नथ और हाथ पावों में चांदी के चमकते गहने। लेकिन वह साधारण महिलाओं की तरह खाना बनान या सिलाई बुनाई की बातों की बजाए आपको बताएगी कि किस प्रकार तारों सक्रिट चार्ज कंट्रोलर और पैनलों को जोड़कर सौर लालेटन बनाई जाती हैं। उसके द्वारा बनाए सौर लालटेन राजस्थान के गांवों के र्कइं अधेरे घरों और स्कूलों में प्रकाष फैला रहे हैं। कमला राजस्थान की पहली बेयरफुट महिला सौर इंजीनियर है। कमला की तरह देष के आठ राज्यों सिक्किम, आसम, बिहार, राजस्थान केरल, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेष और आंध्र प्रदेष के विभिन्न गांवों की महिलाएं तिलोनिया गांव के सोषल वर्कस रिसर्च सेंटर (एसडब्लयू आर सी) के बेयरफुट कालेज में प्रषिक्षण ले रहीं हंै। छह महीने के प्रषिक्षण के बाद ये महिलाएं सौर लैंप बनाने और उसकी मरम्मत करने में दक्ष हो जाती हैं उसके बाद अधिकतर महिलाएं अपने क्षेत्र के गांवों में जहां बिजली की कमी है या बिजली बिल्कुल नहीं होती सौर उर्जा प्रणाली का इस्तेमाल करतीं हंै। तिलोनिया के बेयरफुट कालेज में महिलाओं को सोलर इंजीनियर का प्रषिक्षण देने का काम 1995 में षुरू किया था। आज 75 ग्रामीण महिलाएं सोलर फोटोवोल्टिक इंकाइयों और सौर लालटेन बनाने; लगाने और उसकी मरम्मत और देखभाल करने में प्रषिक्षित हो चुकी हंै। किसी इलेक्ट्राॅनिक और सौर इंजीनियर की तकनीकी सहायता के बिना कमला और उसकी अन्य बेयरफुट इंजीनियर महिला साथियों ने दस सौर पाॅवर प्लांट; पांच हजार स्थिर घरेलू बिजली प्रणाली, तीन सौर पंप और 37 सौर पानी के हीटर लगाने और बनाने का कार्य किया है। सबसे बड़ी बात यह है कि इनमें से अधिकतर महिलाएं अषिक्षित या अर्द्ध षिक्षित हैं लेकिन उन्होंने अपनी केवल खेतों में काम करने या घरेलु ढर्रे की भूमिका के अलावा वे किस प्रकार से बेहतर और परिश्कृत तकनीक को भी हैंडल कर सकती हैं। 23 वर्शीय कमला जब 12 वर्श की आयु में अपने ससुराल सिरोंज गांव में आई तो उसने कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देखा था। वह अपनी चारों बहनों की तरह ही बिल्कुल अनपढ़ थी। उसके घर में स्कूल जाने का अवसर केवल उसके भाइयों को ही मिला। उसका काम अपनी बहनों की देखभाल करना, खाना बनाना और पानी ढोना और पषु चराना था। सिरांेज गांव में जब उसने समाज कार्य अनुसंधान केंद्र के बिजनवाड़ा के रात्रि स्कूल के बारे में सुना तो उसके मन में भी पढ़ने की इच्छा जागृत हुई। उसे लगा कि वह दिन भर घर के सारे काम खत्म कर भी स्कूल जा सकती है। लेकिन उसके पति सास इस बात के लिए तैयार नहीं थे। आखिर उसके ससुर ने उसका साथ दिया और उसने रात्रि स्कूल में पांचवी कक्षा तक पढ़ाई की। रात्रि स्कूल में पढ़ते हुए वह रात के अंधेरे में जलने वाले सौर लैंप से बेहद प्रभावित हुई क्योंकि गैर बिजलीकृत के क्षेत्र में इन लैंपों का अच्छा इस्तेमाल हो सकता है। यही सोच उसे केंद्र के ‘सोलर लाईट’ प्रषिक्षण कोर्स ले गई। इससे पहले गांव की किसी भी महिला ने सौर इंजीनियर का प्रषिक्षण नहीं लिया था। केवल पुरुश ही इसमें दाखिल होते थे। अपने प्रषिक्षण के बाद उसने वर्श 1997 में बिजनवाड़ा की छह महिलाओं को भी सौर उर्जा लैंप बनाने का प्रषिक्षिण दिया। इसके पष्चात कमला के पदचिन्हों पर चलते हुए कईं महिलाओं ने ‘बेयरफुट’ सोलर इंजीनियर बनने का रास्ता अपनाया। कमला के मुताबिक, ‘‘अगर मेरे ससुर ने मुझे प्रोत्साहित न किया होता तो मैं खेतों और घर के कामों से कभी बाहर न निकल पातीं। लेकिन बाद में मेरे पति और मेरी सास भी सहमत हो गए। अब मुझे इस काम में बेहद मजा आता है इसने मेरे जीवन में भी उजाला भर दिया है’’। कमला की तरह सिरंजो गांव की लाडा और डाडिया गांव की दापू भी पहले बैच की महिला सौर इंजीनियर है। किसान परिवार की लाडा कमला से ही प्रोत्साहित हुई और उसने भी प्रषिक्षण हासिल किया लेकिन कुछ ही समय बाद पति की असहमति के कारण वह प्रषिक्षण बीच में ही छोड़ने को मजबूर हो गई। उसे परिवार से प्रोत्साहन देने वाला कोई नहीं था। दापू लोहार जाति के आदिवासी परिवार से संबंधित थी और अपने समुदाय की पहली महिला है जिसने सेकेंडरी स्कूल तक पढ़ने के बाद इस क्षेत्र में पांव रखा था। राजस्थान में करीब 150 रात्रि स्कूल चलते हैं जो बच्चे घर के काम-काज के कारण दिन में स्कूल नहीं जा सकते उनके लिए समाजकार्य अनुसंधान केंद्र ने ये स्कूल खोले हैं इन स्कूलों में रात को सौर लालटेन से ही रोषनी होती है। तीन हजार से अधिक चारवाहे लड़के और लड़कियां इन स्कूलों में जाते हैं। सौर लालटेन मिट्टी के तेल के लालटेनों से अधिक उपयुक्त हैं। समाज अनुसंधान केंद्र अभी तक सौर विद्युतीकरण की प्रक्रिया को आठ राज्यों के कई गैर-बिजलीकृत गांवों में लागू कर चुका है। केंद्र ने यूरोपियन यूनियन और यूएनडीपी द्वारा मिलने वाले फंड की सहायता से कुछ बेहद पिछड़े राज्यों के दूर दराज गांवों को चिन्हित किया है। वर्श 2002 तक करीबन 531 गांवों के करीब 80 हजार लोगों को सौर उर्जा प्रणाली का लाभ मिल रहा है। केंद्र के अध्यक्ष बंकर राय के मुताबिक, ‘‘इस विचार का उद्देष्य यह है कि यदि बेहद साधारण और अषिक्षित ग्रामीण लोग सौर इंकाइयों की परिश्कृत तकनीक को बनाने; लगाने, मरम्मत करने और उसके रखरखाव का कार्य करने में प्रषिक्षित किए जा सकते है तो सोैर ऊर्जा की प्रक्रिया को समूचे विष्व में अपनाया जा सकता है। क्या इसे सफल कहानी कहा जा सकता है? केंद्र के एक कार्यकर्ता का जवाब था, ‘‘उससे भी बढ़कर। यह तो षुरूआत है जहां भी ग्रामीण महिलाएं ये कार्य करती हैं वहां उनकी कीर्ति के चर्चे होते हैं। परिवार में वे अपनी पहचान बना पा रही हैं। यह बात सही है कि अगर पति और परिवार सहमत नहीं होते तो वे निर्णय नहीं ले पातीं या कभी कभी उन्हें बीच में ही प्रषिक्षण छोड़ना पड़ता है। लेकिन कम से कम पहला प्रयास षुरू हो चुका है। ग्रासरूट फीचर्स
6 comments:
बहुत अच्छी रिपोर्ट है.
हां ये है कुछ खबर पढने देखने लायक ॥ महिला सौर इंजिनीयर शीर्षक पढ के ही मन बाग बाग हो गया .......आपका बहुत बहुत आभार ये जानकारी हम तक पहुंचाने के लिए ..
उत्साहवर्धक समाचार दिया है की महिलाए भी किसी क्षेत्र में कम नहीं है .
मेरे लिए बहुत उतसाहवर्धक रिपो्र्ट
अच्छी रिपोर्ट।
आप सब का धन्यवाद . आप की इस टिप्पणी से मेरी मेहनत सफल हुई .
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