अन्नू आनंद
फिरोजपुर झिरका, हरियााणा
हरियाणा में मेवात क्षेत्र के सबसे पिछड़े गांवों में से एक गांव नीमखेड़ा। दो-चार जमींदारों के घरों को छोड़कर गांव में सामुदायिक विकास का कोई प्रमुख ंिचन्ह नजर नहीं आता। मेव जाति के इस गांव में अधिकतर लोग अनपढ़ हैं। गांव के प्रत्येक घर में औसत बच्चों की संख्या सात है। यहां के अधिकतर युवा लड़के और लड़कियां खेती और जंगल में जानवर चराने का काम करते हैैं। विकास से अछूते इस गांव की दशा बदलने के लिए यहां की अगूंठा छाप महिलाओं ने एक अनूठी मिसाल कायम की है। उन्होंने सत्ता की बागडोर अपने हाथों में लेते हुए हरियाणा में पहली महिला पंचायत का गठन किया है। पंचायत में गांव के सभी नौ वार्डों पर महिलाओं को वार्ड पंच बनाया गया है। दिलचस्प बात यह है कि गांव ने ब्लाक समिति और जिला परिषद् समिति में भी महिला सदस्य को ही नियुक्त किया है। पंचायत के सभी सदस्यों ने मिलकर गांव के राजनैतिक घराने से संबंधित आसूबी बेगम को सरपंच बनाया है। हरियाणा में अप्रैल माह में हुए पंचायत चुनावों से कुछ समय पहले गांव के लोगों ने एक बैठक में फैसला किया कि इस बार पंचायत की जिम्मेदारी महिलाओं को सौंपी जाए। गांववालों के मुताबिक इसका एक बड़ा कारण यह है कि पिछले 17-18 सालों से गांव की पंचायत पर पुरुषों का वर्चस्व था। इस दौरान गांव में विकास का कोई बड़ा काम नहीं हुआ। इसलिए गांववालों ने मिलकर बिना चुनाव कराए हर वार्ड से र्निविरोध एक सक्रिय महिला को वार्ड सदस्य नियुक्त कर लिया। सरपंच बनी 60 वर्षीय आसूबी बेगम महिला पंचायत के औचित्य को स्पष्ट करते हुए कहती हैं, ‘‘पिछले 17 सालों से गांव में पुरुषों ने राज किया लेकिन गांव की समस्याओं की सुध नहीं ली। क्योंकि उन्हें इन समस्याओं से जूझना नहीं पड़ता।’’ इसकी वजह बताते हुए वह कहती है, ‘‘गांव के अधिकतर पुरुष जुआ खेलने और गांव से बाहर जाकर घूमने में समय बिताते हैं। जो गांव के बाहर नहीं जाते वे किसी भी चाय की दुकान पर बैठकर गप्पे मारने में पूरा दिन बताते हैं जबकि यहां की सभी महिलाएं घर के सारे कामों के अलावा खेतों और पशुओं की देखभाल का काम भी संभालती हैं। इन कामों को पूरा करने में उन्हें कई प्रकार की दिक्कतें आती हैं। वे जब पशुओं को चराने जंगल जाती हैं तो उन्हें घर में पानी की व्यवस्था करने की चिंता भी रहती है। पानी भरने के लिए उन्हें गांव से एक किलोमीटर दूर लगे नल से पानी लाना पड़ता है। इस तरह उनका काफी समय पानी भरने में ही बीत जाता है।’’ गांव से कुछ दूरी पर लगे नल पर महिलाओं की भीड़ देखकर पानी की तंगी का अंदाजा लग जाता है। फिरोजपुर झिरका ब्लाॅक का यह गांव हरियाणा के मेवात क्षेत्र का सबसे आखिरी गांव है। सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से हरियाणा का यह सब से पिछड़ा इलाका है। इसी पिछड़े इलाके के इस गांव की आबादी तीन हज़ार के करीब है। यहां के मुस्लिम परिवारों में परिवार नियोजन न अपनाने के कारण अधिकतर परिवारों में बच्चों की संख्या सात या आठ है। गांव में मिडिल तक का स्कूल है लेकिन यहां कोई मास्टर नहीं आता। महिला शिक्षिका न होने के कारण भी गांव की लड़कियां को स्कूल नहीं भेजा जाता। इसलिए, यहां मां-बाप उन्हें स्कूल भेजने की बजाए खेती-बाड़ी, पशुओं की देखभाल या घर के कामों में लगा देते हैं। 60 वर्षीय वार्ड पंच सकुरण कहती है, ‘‘स्कूल भेजकर भी क्या करें। स्कूल भेजें भी तो वह केवल पांचवी तक ही पढ़ पाएगी। वह भी अगर मास्टर रोज आए। आगे पढ़ने के लिए तो फिर उन्हें शहर भेजना पड़ेगा। हाई स्कूल यहां से 15 किलोमीटर दूर पुन्हाना में है। लड़कियां इतनी दूर रोज पढ़ने के लिए कैसे जाएं।’’ सकुरण के साथ पंचायत की सभी सदस्य गांव में स्कूल की समस्या को लेकर काफी चिंतित है। 18 वर्षीय फ़रज़ाना पांचवी तक पढ़ी है वह आगे पढ़ना चाहती है लेकिन उसके घरवालों को उसे दूर भेजना मंजूर नहीं। पिछड़ी जाति के लिए सुरक्षित सीट पर मेमुना को वार्ड पंच बनाया गया है। मेमुना के सात बच्चे हैं उसके पति खेती में मजदूरी करते हैं। वह अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती है इसलिए वह इस बात के लिए दृढ़संकल्प है कि पंचायत के माध्यम से सबसे पहले गांव में स्कूल खोलने की कार्यवाही की जाएगी। गांव की अधिकतर महिलाएं पुरुषों से पर्दा करती हैं। वे उनके सामने बोलती नहीं। इसलिए अभी तक गांव पंचायत में उनका प्रतिनिधित्व कम ही रहा। 18 साल पहले आसूबी बेगम की सास सरपंच बनी थी। गांव की कुछ महिलाओं का मानना है कि उस समय कुछ काम हुए थे। लेकिन बाद में पुरुष बने सरपंचों और पंचों ने गांव की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इस दौरान आसूबी बेगम के पति भी सरपंच पद पर रह चुके है लेकिन आसूबी साफ कहती हैं कि उनकी सास के अलावा किसी सरपंच के कार्यकाल में गांव के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया गया। गांव में विकास की धीमी प्रक्रिया के कारणों का खुलासा करते हुए मेवात सोशल एजूकेशनल डेवलपमेंट सोसायटी के महासचिव डाक्टर ए। अजीज के कहते हैं, ‘‘यही गांव नहीं समूचे मेवात में विकास की गति धीमी चल रही है इसका एक बड़ा कारण यहां के लोगों की सोच है। यहां के लोगों का नज़रिया नकारात्मक है। अभी भी वे पुरानी रूढ़ियों में जकड़े हैं। उनकी यह सोच विकास के किसी भी काम में बाधा बनती है।’’ डाक्टर अज़ीज ने बताया कि मेवात में निर्वाचित पंचायतों से अधिक जाति, गोत्र और धर्म पंचायतों का अधिक दबदबा है। इन पंचायतों की यहां अधिक चलती है। कुछ समय पहले मेवात क्षेत्र के ही नूह ब्लाॅक में एक दंपति को जात से बाहर शादी करने के कारण जात पंचायत ने बेहद कड़ी सजा दी थी। करीब पिछले 20 सालों से मेवात क्षेत्र पर कार्य कर रहे डाक्टर अज़ीज ने बताया, ‘‘जब उन्होंने इस क्षेत्र में स्वयं सहायता समूह बनाकर महिलाओं को आर्थिक सामाजिक रूप से सबल बनाने का काम शुरू किया तो यहां फतवा जारी कर दिया गया कि मेव महिला के लिए ब्याज लेना और घर से बाहर निकलना हराम है। जागरूकता की कमी के कारण इस प्रकार के फतवे क्षेत्र के विकास में बाधा बनते हैं। पहली महिला पंचायत पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘पुरुषों के सामने महिलाएं बोलती नहीं लेकिन संभव है कि महिलाएं आपस में बैठकर अधिक अच्छे से विचार-विमर्श कर सकें लेकिन इसके लिए जरूरी है कि ‘पति’ उनको सकारात्मक सहयोग दें।’’ 40 वर्षीय वार्ड पंच सेमुना पुरुषों से पर्दा करती है। वह अपने वार्ड पंच बनने से खुश है और उसका कहना है कि उसके पति भी इस बात पर खुश हैं। सरपंच आसूबी बेगम सहित सभी वार्ड पंचों को कहना था कि वे अपने पतियों के सहयोग से ही यह कदम उठा सकीं हैं। आसूबी के मुताबिक, ‘‘उन्हें प्रशासनिक प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए पुरुषों का सहयोग लेना पड़ेगा। लेकिन वह विश्वास के साथ कहती है, बी डी ओ (ब्लाॅक डेवलपमेंट आफिसर) से बातचीत करने या उससे प्रशासनिक जानकारी के लिए भले ही हम पतियों से सहयोग लें लेकिन फैसला हम महिलाओं का ही होगा।’’ वार्ड पंच महमूदी से जब पूछा गया कि गांव की सबसे बड़ी समस्या क्या है तो वह एकदम उत्तेजित होते हुए बोली, ‘‘यह पूछिए कि क्या समस्या नहीं है।’’ वह कटाक्ष करते हुए कहती है, ‘‘शहरी औरतों के लिए यह समझना बेहद मुश्किल है। मैं सुबह रसोई में चूल्हा फूंकती हूं। दिन में जंगल में पशुओं को चराती हूं। फिर खेत में मशीन से गेहूं और ज्वार काटने का काम करना पड़ता है। इन सब कामों के साथ दूर से पानी भरकर भी लाना पड़ता है। गांव की सभी महिलाओं की यही दिनचर्या है। इस हिसाब से देखा जाए तो हमें गांव में गोबर गैस प्लांट चाहिए। पानी की सप्लाई चाहिए ताकि पानी भरकर लाने से हमें निज़ात मिले।’’ नवनिर्वाचित महिलाओं की पंचायत ने पिछले दिनों गांव में आए विधानसभा के उपाध्यक्ष को दरखास्त देकर गांव के छोटे से नाले में पानी की सप्लाई तो शुरू करवा दी है। गांववालों के मुताबिक इस नाले का पानी खेतों में सिंचाई के काम आता है। महमूदी के मुताबिक लेकिन घर के कामों और पीने के पानी की अभी भी यहां कोई सप्लाई नहीं। पानी और स्कूल के अलावा गांव की दूसरी बड़ी समस्या स्वास्थ्य केंद्र की है। सबसे निकटतम स्वास्थ्य केंद्र पुन्हाना में है। यहां कोई जच्चा-बच्चा अस्पताल भी नहीं है। 99 प्रतिशत प्रसव अप्रशिक्षित दाइयों के हाथों से होते हैं जिसकी वजह से प्रसव में महिलाएं कई प्रकार की बीमारियों की शिकार हो जाती हैं। वार्ड पंच सेमुना ने बताया, ‘‘गांव में न तो कोई एएनएम आती है और नहीं कोई सरकारी डाक्टर। प्रसव में किसी भी प्रकार की दिक्कत होने पर भी महिलाओं को दूर शहर की ओर भागना पड़ता है।’’ सेमुना बताती हैं, ‘‘प्रसव में गड़बड़ी के कारण कई बार महिला या तो मर जाती है या उसे कोई न कोई बीमारी घेर लेती है।’’ वार्ड पंच आशिमी स्वास्थ्य केंद्र खुलाने के साथ गांव में सभी घरों में शौचालय न होने पर चिंता प्रकट करती है। वह बताती है कि अधिकतर घरों में शौचालय नहीं। महिलाओं को दूर जंगल में जाने में कठिनाई होती है खासकर बड़ी और बूढ़ी महिलाओं को। इसलिए वह चाहती है कि गांव में गरीबों और दलितों के घरों मंे भी शौचालय बनाए जाएं। पंचायत की ये सभी महिला सदस्य बखूबी जानती हैं कि गांव की जरूरतें क्या हैं लेकिन इन जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें बेहतर सहयोग और प्रशिक्षण की जरूरत है। सभी सदस्यों की मांग है कि पंचायत के कार्यों को पूरा करने के लिए पंचायत मंे सचिव भी महिला होनी चाहिए। क्योंकि उनका मानना है कि महिला सचिव होने से उनके लिए काम करना अधिक सरल होगा। पंचायत की इन महिलाओं को शपथ लेने के दिन का इंतजार है। शपथ लेेने के बाद वह सबसे पहले गांव मंे पंचायत कार्यालय खोलेंगी इसके लिए जगह ढूंढी जा रही है। गांव की इन जुझारू महिलाओं ने अब गांव की काया कल्प करने की ठान ली है। गांव की इन वीरांगनाओं के लिए न तो उनका घूंघट रूकावट बनेगा न ही उनकी अनपढ़ता क्योंकि विपरीत परिस्थितियों के अनुभवों ने उनको सबल बनना सिखा दिया है। हरियाणा जैसे प्रदेश में जहां की पंचायतों ने अपने तानाशाही हुक्मों से महिलाओं का जीना हराम कर दिया है, वहां महिला पंचायत की परंपरा शुभ संकेत माना जा सकता है।
यह स्टोरी मई २००५ में कवर की गई थी और ग्रासरूट सहारा समय , फिनासिअल
वर्ल्ड , ट्रिबुन सहित कई समाचारपत्रों में प्रकशित हुई
वर्ल्ड , ट्रिबुन सहित कई समाचारपत्रों में प्रकशित हुई
2 comments:
अनु जी इस स्टोरी के अपडेट भी दे देतीं आप। अब तक वहां गांव की स्थिति काफी बदल चुकी है। साढ़े चार साल में वहां क्या हुआ इसका लेखा'जोखा क्या है।
आप के सुझाव के लिए धन्यवाद. यह रहा अपडेट.
पहले दो सा सालों में वहां महिलाओं को कई मुशिकलों का सामना करना पड़ा . उन के लिए पुरुष प्रधान समाज में शासन चलाना आसान नहीं रहा. एक समय तो ऐसा भी आया की सभी सदस्यों ने इस्तीफा देने की घोषणा कर दी. लेकिन फिर कुछ हस्तक्षेप से स्थिति संभाली गयी . आखिर उनका साहस रंग लाया और इस साल वे गाँव में स्कूल खुलवाने में सफल हुई हैं. अब अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करने के लिए ये महिलाएं संघर्ष कर रही
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