Monday, 6 October 2008

शिक्षा का प्रकाश फैलाते रात के स्कूल

अन्नू आनंद
(तिलोनिया, राजस्थान)
रात के आठ बजे का समय। जयपुर से करीब 120 किलोमीटरकी दूरी पर स्थित गांव तिलोनिया में एक स्कूल में सौर उर्जालैम्पों की रोशनी में 6 से 13 वर्ष की आयु के करीब 32 बच्चे पढ़नेमें तल्लीन हंै।जयपुर से अजमेर तक का अधिकतर रास्ता अरावली कीबंजर पहाड़ियों और पथरीली जमीन से घिरे होने के कारण अधिकही सुनसान है। रात का अंधेरा इसे और भी वीरान बना देता है।ऐसे वातावरण में स्कूलों से गूंजती बच्चों की प्रार्थनाओं की आवाजकिसी को भी हैरत में डाल सकती है।लेकिन यह द्वश्य केवल तिलोनिया गांव का नहीं। जयपुरऔर अजमेर और सीकर जिलों के कुछ गावों में चलने वाले रात्रिस्कूल इस समय कई परिवारों में शिक्षा का प्रकाश फैला रहे हैं।हालांकि सरकार शिक्षा आप के द्वार योजना के तहत हर बच्चे कोशिक्षित करने का दम भरती है लेकिन हकीकत में ऐसे बच्चों कीकमी नहीं जो गरीबी के कारण पारिवारिक आय में सहयोग करनेके कारण दिन के स्कूलों से बाहर हैं। यह बच्चे दिन के समयखेतों में मजदूरी या लकड़ियां लाने, पशुओं को चारा चराने तथापानी लाने के अलावा र्कइं घरेलू काम निपटाते हैं। इस के अलावादिन के स्कूलों की अधिकतर शिक्षा उनकी व्यावहारिक जरूरतोंकी दृष्टि से उपयोगी नहीं होती। इन स्कूलों में पढ़ाने का माध्यमग्रामीण बच्चों की रोजाना की भाषा से पूर्णतया भिन्न होता है।स्कूल का पाठ्यक्रम उनके परिवेश को ध्यान में रखकर नहींबनाया जाता। पांचवी या सांतवी पास करने के बाद भी छात्रकिसी प्रकार की हस्तकला या खेती बाड़ी के कामों में दक्ष नहीं होपाते। ये कारण ग्रामीण इलाकों के बहुत से बच्चों को औपचारिकशिक्षा प्रणाली से दूर रखते हैं।लेकिन तिलोनिया स्थित बहुचर्चित संस्था समाज कार्य एवंअनुसंधान क्षे़त्र (बेयरफुट कालेज) ने इन बच्चों को उनकी जरूरतोंके मुताबिक शिक्षित करने के लिए रात्रि स्कूलों की शुरूआत कीहै। इन स्कूलों के कारण बच्चे दिन भर अपने कामकाज खत्म कररात को सात बजे स्कूल पढ़ने आते हैं। यह स्कूल सामुदायिकभवन, धर्मशाला या किसी औपचारिक स्कूल की इमारतों में चलतेहैं।अजमेर जयपुर और सीकर जिले के गांवों में 150 ऐसे स्कूलचल रहे हैं। जिन में 3000 के करीब बच्चे पढ़ते हैं। इन में 90प्रतिशत संख्या लड़कियों की है। इन स्कूलों की सफलता सेप्रोत्साहित होकर केंद्रीय सरकार ने भी अन्य कई राज्यों मंे ऐसे125 रात्रि स्कूल खोले हैं।इन स्कूलों की देख-रेख का काम बेयरफुट कालेज काशैक्षणिक स्टाफ देखता है। स्कूलों का पाठ्यक्रम बच्चों की जरूरतोंऔर उनके परिवेश को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है।स्कूलों में मुख्यतः पर्यावरणीय शिक्षा, हस्तकला के अलावा हिन्दीऔर गणित पढ़ाए जाते हैं।इसके अलावा पाठयक्रम को गावों की सामाजिक- आर्थिकऔर पर्यावरणीय स्थितियों से भी जोड़ा जाता है। ये स्कूल केवलपांचवी कक्षा तक ही सीमित हंै। चैथी और पांचवी की कक्षाओं मेंसरकारी स्कूलों के पाठयक्रम को भी शामिल किया जाता है ताकिरात्रि स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे बाद में औपचारिक स्कूलों में भी प्रवेशपा सकें।तिलोनिया स्थित रात्रि स्कूल नं 1 की कुल पांच लड़कियों नेपिछले वर्ष बोर्ड की परीक्षा पास की है। यहां कुल 32 छात्र हैं। इनमें लड़कियों की संख्या अधिक है। यह स्कूल 1998 से एक पुरानीखाली पड़ी धर्मशाला में चल रहा है। इस स्कूल में पढ़ने वाली10-11 वर्षीय जमुना दिन के समय पानी और लकड़ी लाने काकाम करती है। अनु दिन में बकरियां चराती है इसी तरह चंतादिन में घरेलु काम निपटाती है। यहां पढ़ाने की जिम्मेदारी दो अध्यापकों मुल्ला राम और चंद्रकातां पर है। मुल्ला राम हायर सेंकड्रीपास हैं जबकि चंद्रकाता सांतवी पास। बच्चों को पढ़ाने के बादरात नौ बजे अध्यापक सभी बच्चों को उनके घरों में छोड़ने के बादघर जाते हैं। चंद्रकाता हिन्दी और कला पढ़ाती हैं। च्ंाद्रकांताबताती है, ‘‘जब बच्चे रात के स्कूलों मंे पढ़ने के लिए आते हैं तोवे थके हुए होते हैं इसलिए हमें पढ़ाई को रूचिकर बनाने के लिएखेल और अन्य रूचिकर माध्यमों का इस्तेमाल करना पड़ता है।क्योंकि अगर पढ़ाई दिलचस्प नहीं होगी तो बच्चे पढ़ने नहींआएंगे।12 वर्षीय नदूं बताता है कि, ‘‘उसे रात में स्कूल आना अच्छालगता है। दिन में घर के कामों के कारण कोई स्कूल भेजता भीनहीं।’’ सात वर्षीय वनफूल बड़ी उत्सुकता से अपनी कापियांदिखाती है कि उसने गिनती और क ख ग सीख लिया है। उसकीशिक्षा का प्रक्रक्रकाश फैलैलैलाते रात के स्कूलूलूलअन्नू आनंदंदंदशादी हो चुकी है। यहां पढ़ने वाली दस वर्षीय चांत कुमारी भीविवाहित हैं। बचपन में हुई इस शादी की व्यर्थता को अब वे शिक्षाके माध्यम से समझ रही हैं। सभी स्कूलों में शिक्षकों के चुनाव कीजिम्मेदारी ग्राम सभा की शिक्षा समिति ही करती है। इस समितिमें गांव के कुछ वरिष्ठ व्यक्ति शामिल रहते हैं। सलाह-मशिवरे केअलावा ये समितियां स्कूलों के बजट बनाने का काम भी देखतीहैं।शिक्षक के चुनाव में शिक्षा स्तर की बजाय ऐसे व्यक्ति कोअधिक प्राथमिकता दी जाती है जो समुदाय के प्रति जिम्मेदार होऔर अच्छे प्रेरक का काम कर सके। इन शिक्षकों को बेयरफुटकालेज की ओर से प्रशिक्षण भी दिया जाता है। बेयरफुट कालेजके संस्थापक बंकर राय के मुताबिक इन स्कूलों से निकलने वालेकई अच्छे छात्र और छात्राएं उनके संस्थान में बतौर बेयरफुटइंजीनियर कार्य कर रहे हैं और वे रात्रि स्कूल से शिक्षित लोगों कोप्राथमिकता भी देते हैं।’’

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