Monday, 14 December 2009

बिहार की क्रांतिकारी ग्रामीण महिलाएं

अन्नू आनंद

मुज़फ्फरपुर, बिहार

तीस वर्षीय चंद्रा देवी चार साल पहले तक कभी घर से बाहर नहीं निकली थी। घर के चूल्हे चौके और अन्य खेती के कामों में खटने के बाद उसे घर के छोटे-मोटे खर्च को पूरा करने के लिए तरसना पड़ता था। उस का पति खेती का काम करता लेकिन उसकी आमदन इतनी नहीं थी कि घर की जरूरतें पूरी हो जाएं। उस समय चंद्रा ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि एक दिन वह न केवल अपनी जरूरतों को खुद पूरा करेगी बल्कि घर की आमदनी का बड़ा हिस्सा कमाने लगेगी। लेकिन वर्ष 2001 में स्वयं सहायता समूह की सदस्य बनने के बाद उसके जीवन की दिशा ही बदल गई। बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के गांव अदिगोपालपुर की रहने वाली चंद्रा के लिए समूह का सदस्य बनना भी आसान न था। वह बताती है कि जब वह सहेलियों से मिली जानकारी के मुताबिक ‘स्व-शक्ति स्वयं सहायता समूह परियोजना’ के संचालक के साथ गांव में बनने वाले नर्गिस समूह की सदस्य बनने की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए गई तो गांव के कुछ लोगों ने उसके पति को गलत बता दिया जिसकी वजह से दस दिन तक उसका पति से झगड़ा होता रहा। उस पर सदस्य न बनने का दबाव डाला गया। लेकिन चंद्रा ने हार नहीं मानी और समूह नहीं छोड़ा। आज उसी समूह की बदौलत पति भी उसकी इज्जत करता है और जरूरत पड़ने पर समूह की बैठक के लिए उसे छोड़ने भी जाता है। बंदाई(ओरांई) गांव की जातरान देवी स्वयं सहायता समूह का सदस्य बनने से पहले केवल इतना ही जानती थी कि उसे प्रति माह 20 रूपए जमा करने हांेगे और बदले में जरूरत पड़ने पर वह दो रूपए के ब्याज पर कर्ज ले सकेगी। लेकिन समूह से जुड़ने के बाद केवल तीन सालों में उसमें इतना बदलाव आया कि आज वह न केवल 50 समूहों का कामकाज देख रही है ब्लकि स्वयं कमाई भी कर रही है। जातरान देवी कहती है,‘‘ मैं सत्तू, चिप्स के पैकेट बनाकर दुकान में भेजती हूं इससे मुझे अच्छी कमाई हो जाती है।’’ जातरान के मुताबिक उनके समूह की 30 हजार रूपए की राशि बैंेक में जमा है। पुरूषोतमपुर गांव के स्वयं सहायता समूह की 28 वर्षीय अमृता देवी प्रति माह 30 रूपए समूह में जमा करती है। दस सदस्यों का उनका समूह प्रति माह कुल 300 रूपए जमा करता है। उसके हनुमान प्रसाद समूह को बैंक से मिलने वाली आर्थिक सहायता की पहली दस हजार रूपए की किश्त भी मिल चुकी है। वह बताती है कि समूह को मिले प्रशिक्षण के बाद उनके समूह की सभी महिलाएं समूह से कर्ज लेकर पशुपालन, हाट बाजार या मछलीपालन का काम कर रहीं हैं। रसूलपुर गांव की शैमु निशा कुछ साल पहले तक बीड़ी मजदूर का काम करती थी लेकिन आज वह खुद बीड़ी बनाने के धंधे की मालकिन है। यमुना शक्ति समूह की सुनीता पूरी तरह जानती है कि मुखिया के पास विकास का कितना फंड आता है और कौन सी सरकारी योजनाएं उसके क्षे़त्र में लागू हैंै। वह महिलाओं को पंचायती राज के अलावा सरकारी योजनाओं की जानकारी देने का काम कर रही है। मैदापुर पंचायत के ‘आरती स्व-शक्ति समूह’ की धर्मशीला चैधरी 22 समूहों की अध्यक्ष है। 8 से 11 तक के समूहों का एक कलस्टर होता है। धर्मशीला ने समूह का सदस्य बनने के बाद पंचायती राज और अन्य समाजिक समस्याओं की जानकारी हासिल की और अब वह समूह की सदस्यों को दहेज और दूसरी समस्याओं के प्रति जागरूक बनाने का काम करती है। महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने में स्वयं सहायता समूह पूरे देश में काम कर रहे हैं। लेकिन बिहार में शुरू हुए ‘स्व-शक्ति स्वयं सहायता समूह’ (एसएचजी) परियोजना विशिष्ट है। इसकी खास विशेषता यह है कि इसमें बचत और आय अर्जन कार्यकलापों के अलावा समूह की महिलाओं को पूरी तरह सबल बनाने के लिए पंचायती राज और विकास संबंधी सरकारी योजनाओं की जानकारियां उपलब्ध कराने का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। कईं प्रकार के सरकारी और गैर सरकारी हस्तक्षेपों के माध्यम से यहां की ग्रामीण महिलाएं सामुदायिक स्तर की जरूरतें पूरी करने के निर्णयों में भागीदार बन रही हैं। बिहार राज्य महिला विकास निगम द्वारा विश्व बैंक और आईएफएडी की मदद से देश के सात राज्यों के लिए प्रस्तावित इस ‘स्व-शक्ति परियोजना’ की शुरूआत वर्ष 2001 मुजफ्फरपुर जिले के 5 ब्लाकों में की गई। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी रेखा से नीचे की महिलाओं की स्थिति सुधारना है। इसलिए जिले के सीमांत और छोटे किसान परिवारों या भूमिहीन परिवारों की महिलाओं को लक्ष्य बनाया जा रहा है। जिला स्व-शक्ति योजना के संचालक अविनाश कुमार बताते हैं, ‘‘महिलाओं की सामाजिक और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बनाने के लिए और सामुदायिक संपतियां जैसे पेयजल, शौचालय और डे- केयर सेंटर बनाने जैसे कार्यों की जिम्मेदारी भी इन समूहों पर डाली जा रही है और महिलाएं इन्हें बखूबी निभा रही हैं’’। मैदापुर पंचायत यमुना शक्ति स्वयं सहायता समूह से जुड़ी सुनीता राय ग्रामीण महिलाओं को इंदिरा आवास योजना, वृद्दा पेंशन योजना और मातृत्व लाभ की जानकारी देती है। सैफुद्दीनपुर पंचायत के गांव इतबारपुर की अनीता देवी तीन कलस्टर संगम बेधा की अध्यक्ष है। इन तीन कलस्टरों में 18 समूह हैं। अनीता सभी समूहों के खाते और लेजर बुक लिखने का काम करती है। यहां के समूह की अधिकतर सदस्यों ने अपने बूते पर सामाजिक समस्याओं पर निर्णय लेकर उसे लागू करने की शुरआत भी कर दी है। ऐसे कई मामले देखने को मिल रहे हैं जहां गांव में होने वाले छोटे-मोटे झगड़ांे का निपटान समूह की मदद से किया गया हो। कासीरामपुर गांव के पार्वती शक्ति समूह की पूनम देवी ने अपने गांव में दूसरे के खेत में बकरी जाने से पैदा हुए झगड़े का निपटान सूमह के सदस्यों की मदद से किया। वह बताती है, ‘‘गांव की एक महिला की बकरी दूसरे के खेत में चली गई तो उस खेत के मालिक ने उसे अपनी बताकर महिला को थप्पड़ मारा। हमने कलस्टर समूह की बैठक बुलाई और फैसला किया कि आरोपी पुरूष महिला से माफी मांगे। महिलाओं की बैठक के बारे में सुनकर वह पुरूष घर से बाहर नहीं निकला और बाद में मैदापुर की 400 महिलाओं के सामने उसने गलती स्वीकार की।’’ मोतीपुर प्रखण्ड के जसौली गांव में दीपा समूह ने गांव में बच्चों के पढ़ने की समस्या को देखते हुए सूमह की सहायता से गांव में ‘स्व-शक्ति दीप बाल केंद्र’ स्कूल का निर्माण किया। कलस्टर की बैठक में दीपा समूह के सदस्यों ने गांव में स्कूल न होने की समस्या पर चर्चा की फिर अन्य चार समूहों की सहायता से स्कूल की शुरूआत हुई। समूह ने तय किया कि स्कूल के शि़़क्षक को वेतन देने के लिए प्रत्येक छात्र से 10 रूपए की फीस ली जाए। आज इस स्कूल में 45 से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं। इसी प्रकार अदिगोपालपुर पंचायत की जागृति समूह की अध्यक्ष शाहदुल्हन गांव में खुले स्कूल में निरक्षर महिलाओं को पढ़ाती है। इसके लिए गांव की पढ़ी लिखी महिलाओं की मदद भी ली जाती है। दिल्ली की प्रिया संस्था की मदद से एसएचजी की महिलाओं में नेतृत्व की भावना पैदा करने के लिए ‘सिटिजन लीडर’ नाम का कार्यक्रम तैयार किया गया है। इस कार्यक्रम के तहत महिलाओं की पंचायती राज में भागीदारी बढ़ाने के लिए उन्हें प्रेरित किया जाता है। इसके लिए विभिन्न समूहों की सबसे काबिल महिला को प्रेरक बनाया जाता है। इस कार्यक्रम को स्वशक्ति सोजना के तहत लागू किया जा रहा है। मुजफ्फरपुर जिला बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र है इसके 16 ब्लाकों मंे से 11 ब्लाक अक्सर बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। जिले की जनसंख्या का अधिकतर प्रतिशत जीविका के लिए कृषी पर निर्भर है इसलिए महिलाओं को खेती के उन्नत तकनीकों का प्रशिक्षण देने के लिए किसान क्लब बनाए जा रहे हैं। इन क्लबों में पुरूषों को भी सदस्य बनाया जा रहा है। मुजफ्फरपुर स्थित सेंटर फाॅर कम्युनिकेशन रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट अर्थात् संसर्ग संस्था इन क्लबों को गठित करने में मदद कर रहा है। क्लब के मकसद को स्पष्ट करते हुए वरूण कहते हैं,‘‘किसान क्लब के माध्यम से विभिन्न क्षेत्र के किसान कृषी के उन्नत तकनीक, आधुनिक यंत्रों का प्रयोग, मार्केटिंग और बैंक के साथ जुड़ाव आदि के तरीकों को मिल बैठकर तय करते हैं। इन क्लबों की मदद से खेती में महिलाओं और पुरूषों के संयुक्त प्रयास को बढ़ावा मिल रहा है। जिले में स्वयं सहायता समूहों के विस्तार और इसकी सफलता को देखते हुए अब इन समूहों का एक फेडरेशन बनाने की शुरूआत हो रही है। संसर्ग के जिला समन्वयक जितेंद्र प्रसाद सिंह के मुताबिक इस संगठन में गांव, पंचायत, ब्लाक और जिला स्तर के करीब 5000 समूहों को शामिल किया जाएगा। संगठन का मुख्य मकसद समूहों की बैंकों से लिकिंग बढ़ाना और और उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ प्रदान करना है। लोक सेवा संगठन के तहत इन समूहों को एकत्रित करने का मकसद समूहों को सशक्त बनाना और राष्ट्रीय स्तर पर इनकी पहचान कायम करना है। स्वयं सहायता समूहों ने गांव में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार को रोकने के लिए गावों में युवा समूह बनाए हैं। जो गांवों में लोगों को गुटखा और पराग इस्तेमाल करने से रोकते हैं। किशोर लड़कियों के लिए संसर्ग ने किशोरी पंचायतें बनाई हैं। ये किशोरियां कम उमर की शादियों को रोकने में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। जिस बिहार की बात अक्सर पिछड़ेपन, गरीबी और भ्रष्टाचार के लिए की जाती है उसी बिहार के गावों की हजारों महिलाएं केवल विकास की बात करती या समझती हैं। स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से सबलता की मिसाल बनी ये सभी महिलाएं उन लाखों करोड़ो शहरी महिलाओं के लिए सबक हैं जिनका अधिकतर समय सास बहू के सीरियल देखने और उस पर चर्चा करने में बीतता है। बिहार की इन क्रंातिकारी महिलाओं को मिलने और उनकी घर गांव और समुदाय की जरूरतों के प्रति सजगता को जानने के बाद मेरा यह विश्वास और भी दढ़ हो गया है कि ये ग्रामीण महिलाएं उन मध्यवर्गीय पढ़ी लिखी शहरी महिलाओं से कहीं अधिक सबल हैं जो हर प्रकार के अधिकारों के प्रति जागरूक होने के बावजूद भी अपना एक फैसला खुद नहीं ले पातीं।

1 comment:

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत सही. ऐसा आज से नही बरसों से हो रहा है. तथाकथित पढी-लिखी महिलायें अपने फ़ैसले खुद लेने की हकदार ही नहीं हैं.