Tuesday, 16 March 2010

अमल में लाना भी आसान नहीं महिला बिल

अन्नू आनंद

बेहद जद्दोजहद के बाद राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल तो पारित हो गया। लेकिन लोकसभा में यह बिल मौजूदा स्वरूप में पारित होता दिखाई नहीं देता। अब आरक्षण का प्रतिशत घटाने का दबाव बना कर सहमति बनाने की कोशिश चल रही है। हांलाकि सरकार बार-बार मौजूदा स्वरूप में इसे पास कराने के संकल्प को दुहरा रही है। लेकिन यह उतना आसान भी नहीं है। सबसे बड़ी चिंता तो यह है कि अगर बिल मौजूदा स्वरूप में लोकसभा में पास हो भी गया तो इसे अमल में लाने और आरक्षण के मकसद को पूरा करने का रास्ता बिल पास कराने से भी कठिन साबित होगा।

बिल को सदन में पहुंचाने के 14 साल के संघर्ष और इसमें ओबीसी महिलाओं को आरक्षण देने के यादव नेताओं के अड़ियल रवैये पर बेहद चर्चा और विश्लेषण हो चुका है। अब जरूरत यह देखने कि है कि महिला आरक्षण बिल को कानूनी जामा पहनने के बाद किन कठिनाइयों और चुनौतियों से गुजरना पड़ेगा। बिल के मुख्य प्रवधानों को देखने से साफ जाहिर है कि जितनी कठिन राह इसको पास कराने की रही उसको लागू करने और उससे प्रत्याशित परिणाम हासिल करने का संघर्ष और भी कठिन साबित होगा।

पहले बिल के मुख्य प्रावधानों पर एक नजर। मौजूदा स्वरूप में अगर बिल पारित होता है तो लोकसभा और सभी राज्यों (दिल्ली सहित) के विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इसी प्रकार एससी और एसटी के लिए आरक्षित कुल सीटों मंे से एक तिहाई सीटें इन समूहों की महिलाओं के लिए आरक्षित होगीं। मसौदे के मुताबिक सीटों का आरक्षण रोटेशन के आधार पर होगा। कानून लागू होने के 15 सालों के बाद महिलाओं के लिए आरक्षण की अवधि खत्म हो जाएगी।

अगर बिल के इन मुख्य बिदुंओं का विश्लेषण करें तो कई सवाल और दिक्कतें जेहन में आते हैं। सबसे बड़ी चिंता सीटों के आरक्षण को लेकर है। इस संदर्भ में बिल में सीट के आरक्षण की प्रक्रिया को स्पष्ट नहीं किया गया। बिल के मुताबिक आरक्षित सीटों का निर्धारण संसद द्वारा निर्धारित आथोरिटी करेगी। लेकिन उसके लिए क्या प्रक्रिया होगी इसकी कोई चर्चा नहीं। अगर सीटांे का निर्धारण न्यायसंगत तरीके से नहीं हुआ तो इससे महिलाओं को समानता के दर्जे पर लाने का मकसद पूरा नहीं होगा। जंयती नटराजन की अध्यक्षता में बनी स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट मंे सिफारिश की है कि सरकार को इस मसले पर उचित तरीके से विचार विमर्श करना चाहिए। इसके अलावा बिल में रोटेशन के आधार पर सीट के आरक्षण को लेकर भी आलोचना हो रही है। इस प्रावधान के आलोचकांे का मानना है कि रोटेशन के आधार पर सीटांे का आरक्षण सांसदो विधायको को अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास के कार्य करने के प्रोत्साहन को कम करेगा। इससे राजनैकित अस्थिरता बढ़ेगी। पंचायतरीराज मंत्रालय दारा कराए गए एक सर्वे ने पंचायतो में निर्वाचन क्षेत्र के रोटेशन को खत्म करने की सिफारिश की हैं इस का कारण यह है कि पंचायतों में करीब 85 फीसदी महिलाएं जो पहली बार पंचायतों में चुनकर आईं थीं उनमंे से केवल 15 फीसदी महिलाएं ही दुबारा निर्वाचित हो सकीं क्यांेकि जिन सीटों से वे चुनी गईं थी वे रोटेशन के तहत आरक्षित नहीं रही थीं। रोटेषन का सही प्रीााव विधानसभा और लोकसभा की आरक्षित सीटों पर भी देखने की आशंका व्यक्त की जा रही है।

रोटेशन के कारण वोटरों के प्रति निर्वाचित सदस्य की जवाबदेही भी कम होगी। वोअर अपनी ताकत को कम होता महसूस करेंगे। दो तिहाई मौजूदा उम्मीदवारों को रोटेशनल आरक्षण के कारण अपनी सीटें छोड़नी पड़ सकती है जिससे निर्वाचित सदस्य अपने क्षेत्र के मुद्दों पर गंभीरता से काम नहीं कर पाएंगे। इस प्रकार रोटेषन के प्रावधान को लागू करने में सरकार को बेहद विचार विमर्श और सतर्कता से फैसला लेना होगा।

इस के अलावा महिलाओं के आरक्षण की सीमा अवधि 15 सालों तक सीमित करने पर भी पुनर्विचार की जरूरत है। क्योंकि इससे महिलाओं को पर्याप्त राजनैतिक प्रतिनिधित्व मिलना संभव नहीं। पंचायत चुनावों के अनुभवों से पता चलता है कि आरक्षण के पहले दो चरण महिलाओं के लिए राजनैतिक दावपेंचों को सीखने के लिए जरूरी हैं ऐसे में अगर तीसरे चरण के बाद आरक्षण को खत्म कर दिया जाता है तो इससे महिलाएं अपनी योगयता को साबित करने में और उन्हें बराबरी के स्तर पर लाने का मकसद अधूरा रह जाएगा। स्थायी समिति ने भी इस समय सीमा को बढ़ाने की सिफारिश की है। साठ साल की अवधि के बाद भी अनुसुचित जाति और जनजातियों को मिले आरक्षण का मकसद पूरा नहीं हो सका। ऐसे में 15 साल की अवधि से आस लगाना मूर्खता होगी।

यह ठीक है कि पंचायतों और नगरपालिकाओं में आरक्षण ने महिलाओं में आत्मबल और फैसले लेने की नई उर्जा का संचार किया है और अब संसद तथा विधानसभाओं में भी महिलाओं की गिनती बढ़ने से नीति आधारित फैसलों में महिला नजरिया सार्थक साबित होगा लेकिन समझने की बात यह है कि बिल पास होने का जश्न मनाने के साथ आगे की टेढ़ी पगडंडी पर भी ध्यान में रखना होगा।