Friday, 29 August 2008

शोचालयों की क्रांति में महिला सरपंच




अन्नू आनंद

(राजनांदगांव, छत्तीसगढ़)



राजनांदगांव जिले के छोटे से आदिवासी गांव गुण्डरदेही मेंसरपंच निर्मला बाई कंवर के घर के बाहर बच्चे जोर जोर से ढोलबजा रहे हैं। उनके ढोल की आवाज पूरे गांव में खुशी के माहौलको तरंगित कर रही है। समूचे गांव में जश्न का माहौल है। गांवमें प्रवेश करते ही बने पंचायत कार्यालय के बाहर खड़ी जीप केआसपास लोगों की भीड़ जुटी है। इंतजार है सरपंच का जो इसजीप में बैठकर रायपुर के लिए रवाना होंगी। रायपुर से वह दिल्लीजाएंगी। दिल्ली में उन्हें राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से दो लाख रूपएका पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र मिलेगा। यह पुरस्कार उन्हें सर्वस्वच्छता अभियान के तहत गांव के हर घर में शौचालय का निर्माणकराने के कारण दिया जा रहा है।दो साल पहले जिले के अधिकतर गांवों के लोग खुले में शौचके लिए जाते थे, क्योंकि घरों में कहीं भी शौचालय की व्यवस्थानहीं थी। स्कूल या आंगनवाड़ी में भी शौचालय की कोई नहीं था।इस कारण महिलाओं को विशेष दिक्कत का समना करना पड़ताथा क्योंकि वे केवल रात में या बेहद तड़के ही बाहर जा पाती थीं।इसके अलावा उन्हें छेड़खानी का डर भी सताता था। गांव कीयुवा लड़कियों के लिए शौच के लिए उचित समय और स्थानढूंढना एक सबसे बड़ी परेशानी थी। इसके अलावा साफ-सफाईके अभाव में बच्चों में कुपोषण के मामले भी बहुत अधिक पाए जातेथे। लेकिन आज हर घर में शौचालय की व्यवस्था हो जाने केकारण यहां के सामाजिक जीवन में काफी बदलाव आ गया है।कच्चे घरों से अटे पड़े इस गांव को देखकर लगता नहीं है कियहां किसी भी घर में शौचालय की व्यवस्था है। यहां 90 प्रतिशतआदिवासी परिवार रहते हैं, जो छोटी-मोटी खेती कर या खेतों मेंमजदूरी से अपना घर चलाते हैं। लेकिन 146 बीपीएल परिवारोंसहित गांव के सभी 306 घरों में स्वच्छ शौचालयों का निर्माण होचुका है। गांव के आंगनवाड़ी और प्राथमिक पाठशाला में भीशौचालय बनाए गए हैं। स्वच्छता बनाए रखने के लिए पूरे गांव में20 कूड़ेदानों और 11 टंकियों का निर्माण किया गया है। गांव केबीचो बीच पीने के पानी का हैंडपंप लगा है। गांव के अधिकतरबच्चे स्कूल में देखे जा सकते हैं।पिछले वर्ष आरक्षित सीट से चुनाव जीती दसवीं पास निर्मलाबाई के लिए भी यह एक चुनौती का काम था। वह बताती है,‘‘सबसे कठिन काम गांव के सभी परिवारों को तैयार करना थाक्योंकि व्यवहार में बदलाव लाना आसान कार्य नहीं है। हमने इसेमहिलाओं की अस्मिता और सम्मान का नारा देकर लोगों कोमनाने का काम किया। आबादी से दूर एकांत में शौच जाने वालीमहिलाओं की राशि प्रशासन ने प्रदान की। कुछ परिवारों नेश्रमदान भी दिया।’’ गुण्डरदेही पंचायत में किलारगोंदी गांव भीशामिल है। श्री कौशिक के मुताबिक इस तरह इस योजना से इनदोनों गांवों के कुल 1833 परिवारों को लाभ पहुंचा है।संपूर्ण स्वच्छता अभियान का यह कार्यक्रम वर्ष 2003 में समूचेछत्तीसगढ़ में शुरू हुआ। लेकिन राजनांदगांव जिले में इस कार्यक्रमपर सबसे अधिक तेजी से काम हुआ। यही कारण है कि गुण्डरदेहीपंचायत के साथ इस जिले की 12 पंचायतों यानी 21 गांवों को‘निर्मल ग्राम’ के दो लाख रुपए पुरस्कार के लिए चयनित कियागया। यह संख्या राज्य के सभी जिलों से अधिक है। अधिकतरग्रामीण इस उपलब्धि का श्रेय जिले के कलेक्टर गणेश शंकरमिश्रा को देते है।श्री मिश्रा का मानना है कि ग्रामीणों, प्रशासनिक तंत्र औरजनप्रतिनिधियों की टीमवर्क का परिणाम है। शौचालयों के निर्माणके साथ ही उनके इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना वास्तविक चुनौतीथी।योजना की शुरूआत से पहले जिला प्रशासन ने हर विभाग केएक सदस्य को लेकर कोर ग्रुप का गठन किया। कोर ग्रुप के माध्यम से ग्रामीण स्तर तक अभियान का प्रचार किया गया। जिले मेंसात रूरल सेनेटरी मार्ट खोले गए। इस रूरल मार्ट का संचालनमहिला समूह एवं स्वयंसेवी संस्थाओं को सौंपा गया। गांव के राजमिस्त्रियों को इन विशेष डिजाइन के और कम पानी के इस्तेमालवाले शौचालय बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया गया। पंचायतप्रतिनिधियों को अभियान से जोड़ा गया।गांव की महिलाओं और पुरुषांे के साथ दस बैठकें की गईजिनमें उन्हें हाथ धोने और सामान्य साफ-सफाई का महत्वबताया गया। फिर इनमें से कुछ चयनित महिला-पुरुषों के समूहबनाए गए जो कि गांव की सफाई पर विशेष ध्यान दें।महिला बाल विकास विभाग की सुपरवाइज़र किरन श्रीवास्तवके मुताबिक सभी घरों में शौचालय बन जाने के बाद सभीगांववालों ने मिलकर बैठक में तय किया कि जो भी खुले में के लिए जाएगा उससे 51 रुपए का जुर्माना लिया जाएगा।शुरूआती दिनों में हमने जुर्माने के तौर पर कुछ पैसे भी इकट्ठेकिए। श्री किरन के मुताबिक, ‘‘लेकिन अब सभी गांववालों नेशौचालय का इस्तेमाल करना सीख लिया है।’’लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) के कार्यकारीइंजीनियर और इस अभियान में विशेष रुप से जुड़े एचएस ढींगराने बताया, ‘‘शुरू में लोगों को इसके लिए तैयार करना कठिन कामथा। लोगों के व्यवहार को बदलने में कई दिक्कतें आईं क्योंकि इनआदिवासी क्षेत्रों के कई गांवों में अभी भी शौच के बाद पत्ते काइस्तेमाल किया जाता था। इसलिए इस अभियान को सफल बनानेके लिए जिले के सात हजार के करीब स्वयं सहायता महिलासमूहों की शक्ति का भरपूर इस्तेमाल किया गया। महिलाओं कोइस अभियान का हिस्सा बनाने के लिए हर ब्लाॅक में शौचालय केनिर्माण और उसको समझने और परखने के लिए महिलाओं केलिए विशेष कार्यशालाओं का आयोजन किया गया।उन्हें घर में शौचालय की सुविधा होने और स्वच्छता बनाएरखने जैसी बातों को नुक्कड़ नाटक के जरिए समझाया गया।गांवों में पानी की कमी को देखते हुए श्री ढींगरा ने स्पष्ट कियाकि इन शौचालयों की बनावट ऐसी रखी गई है जिसमें अधिकपानी का इस्तेमाल न हो। इसके लिए ढलान 40 डिग्री पर बनाईहै ताकि पानी की कम जरूरत पड़े और गहराई तीन फुट की है।उन्होंने बताया कि यह डिजाइन यूएनडीपी से सवीकृत है।शौचालयों की व्यवस्था के बाद गांववालों में इसके इस्तेमालकी आदत बनाने के लिए जिला कलेक्टर ने हर ब्लाॅक मेंमहिला-पुरुषों को मां बम्लेश्वरी के नाम पर स्वच्छता कायम रखनेकी शपथ दिलाई। श्री ढींगरा का मानना है कि इससे शौचालयोंके इस्तेमाल की प्रवृत्ति बढ़ी है।अभी तक स्वयं सहायता समूहों की सफलता के लिए मशहूरइस जिले में अब स्वच्छता की क्रांति की शुरूआत हो चुकी है। श्रीमिश्रा को उम्मीद ही नहीं बल्कि पूरा विश्वास है कि आने वाले एकदो वर्षों में जिले के केवल 21 गांव ही नहीं बल्कि हर गांव मेंस्वच्छता की बयार बहेगी।

No comments: