अन्नू आनंद
आखिर कामकाजी महिलाओं को घर और दफ्तर की जद्दोजहद से थोड़ी राहत मिली। बड़े शहरों और उसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के लिए घर से बाहर निकलने के बाद सबसे बड़ी चुनौती ट्रेन या बस में यात्रा करने की होती है। इन भीड़ भरी बसों में किसी भी महिला के लिए सफर करना किसी यातना से कम नहीं होता। लेकिन हाल ही में रेल मंत्रालय ने दिल्ली सहित चार बड़े शहरों मुंबई, कोलकाता और चेन्नई से आठ ‘लेडिज स्पेशल’ ट्रेनों की शुरूआत कर महिलाओं की लंबे समय से चली आ रही सुखद और सुरक्षित यात्रा की मांग को कुछ हद तक पूरा करने का काम किया है। अगस्त माह से शुरू होने वाली इन रेलगाड़ियों का मकसद इन महानगरों में काम करने वाली महिलाओं की यात्रा को सरल और सुरक्षित कर महिलाओं के प्रति निरंतर बढ़ते अपराधों को कम करना है। राजधानी दिल्ली के लिए हरियाणा के पलवल शहर से ऐसी ही एक ट्रेन सुबह चलाई गई है जो शाम को वापस पलवल जाती है। पीले और नीले चटख रंग की इन ट्रेनों का अधिकतर इस्तेमाल इन शहरांे के आसपास बसे छोटे शहरों से महानगरों के कालेजों में पढ़ने वाली लड़कियों और दफ्तरों में काम करने वाली महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। इन ट्रेनों में महिलाओं के बैठने के लिए गद्दे वाली सीट के साथ बेहतर बिजली के पंखे और साफ सफाई का खास ख्याल रखा गया है। दस रूपए की टिकट में भीड़भाड़ और धक्कामुक्की से हटकर सीट पर बैठकर गंतव्य तक पहुंचाने वाली ये ट्रेने महिलाओं में काफी लोकप्रिय हो रही हैं। इसके अलावा इन ट्रेनों में महिला टिकट क्लेक्टर और महिला सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी इन्हें पूरी तरह ‘लेडिज-फेंड्रली’ बनाती है। देश के विभिन्न शहरों में काम करने वाली महिलाओं को घर से निकलते ही सबसे बड़ी चिंता सही-सलामत अपनी मंजिल तक पहुंचने की होती है। इसके लिए उपलब्ध रेल या बस जैसे सार्वजनिक परिवहनों में पुरूषों की भीड़ से जूझते हुए उसमें सफर करना किसी महिला के लिए कोई आसान काम नहीं। हांलाकि पिछले कुछ समय में भीड़ को कम करने के लिए ट्रेनों की संख्या काफी बढ़ाई गई है लेकिन इसके बावजूद अधिकतर कामकाजी महिलाओं को महज टेªन में चढ़ने के लिए मर्दों के साथ धक्कामुक्की का सामना करना पड़ता है। सीट मिलना तो दूर की बात है, महज इन टेªेनों में खड़े होने के लिए जगह बनाने के लिए भी उसे कम मशक्कत नहीं करने पड़ती। खड़े होने की जगह मिल गई तो फिर मर्दो की घूरती निगाहों से बचना, जानबूझकर छूने की कोशिशों को नाकाम करना और उन की गंदी टिप्पणियों को अनसुना करने की कोशिशें भी काफी तकलीफदायक होती हैं। अधिकतर महिलाओं को शिकायत रहती है कि घर और दफ्तर के कार्यों से कहीं अधिक थकाऊ इन टेªनों का सफर होता है। कभी बैठने की सीट मिल भी गई तो अपराधी तत्वों द्वारा पर्स छीनने या फिर छेड़खानी की आशंका हमेशा बनी रहती है। इन समस्याओं पर काबू पाने के मकसद से हांलाकि सामान्य ट्रेनों में एक या दो महिला कोच महिलाओं के लिए आरक्षित रखे जाते हैं। लेकिन आर्थिक सबलता के लिए घर से बाहर निकलने वाली महिलाओं की बढ़ती तादाद के लिए ये एक या दो कोच कभी भी पर्याप्त साबित नहीं हुए। इसके अलावा इन गाड़ियों में यात्रा करने वाली महिलाओं का मानना है कि महिला कोच भी अक्सर पुरूषों से भरे रहते हैं क्योंकि महिला कोचों में बैठने वाले पुरूषों का अक्सर तर्क रहता है कि जब महिलाएं परूषों के डिब्बों में यात्रा कर सकतीं हैं तो फिर पुरूष महिलाओं के कंपार्टमेंट में क्यों नहीं। ट्रेनों में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती छेड़खानी की घटनाओं को देखते हुए वर्ष 1992 में सबसे पहले मुंबई में दो ‘लेडिज स्पेशल’ टेªेनों की शुरूआत की गई थी लेकिन ये दो टेªेने यहां की कामकाजी महिलाओं की बढ़ती संख्या के लिए पर्याप्त नहीं थीं। इसके बाद भारी मांग के बावजूद भी यहां पिछले सत्रह सालों में ऐसी रेलगाड़ियों की गिनती में अभी तक बढोत्तरी नहीं हो पाई थी। अन्य बढ़े शहरों में इस मांग के बावजूद महिला आरक्षण विरोधी रहे लालू प्रसाद जी को ‘लेडिज़ स्पेशल’ का सुझाव कभी नहीं सुहाया । लेकिन ममता बनर्जी ने जब रेल मंत्रालय का कार्यभार संभाला तो उन्होंने अपने पहले रेल बजट में महिलाओं के लिए आठ स्पेशल ट्रेने चलाने का ऐलान किया। भले ही सरकार के इस प्रयास से बहुत सी कामकाजी महिलाओं को राहत पहुंची हो लेकिन केवल ‘स्पेशल रेलगाडियां’ हर महिला को आरामदायक और चिंतामुक्त सफर करने का अधिकार प्रदान नहीं करता। महिला हकों की पक्षधर बहुत सी महिलाओं का यह भी मानना है कि महिलाओं के लिए सुरक्षा की व्यवस्था केवल लेडिज स्पेशल में ही नही ंबल्कि हर टेªेन में होनी चाहिए। अपने पुरूष रिश्तेदारों के साथ सामान्य रेलगाड़ियों में यात्रा करने वाली महिलाओं को भी सुखद और आरामदायक यात्रा करने का पूरा अधिकार है। यह सही है कि पिछले एक दशक में महिलाओं की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सुरक्षित ट्रांसपोर्ट प्रदान करने के उद्देश्य से विभिन्न देशों में कई स्पेशल बसों और ट्रेनों को शुरू किया गया है। मैक्सिको में असुरक्षित परिवहन प्रणाली को रोकने के लिए वर्ष 2008 में ‘केवल महिला बसों’ की शुरूआत की गई थी। लेकिन अब इसे आगे बढ़ाते हुए वहां अनुचित छूने को अवैध मानने के अभियान के साथ वहां की सरकार एक ऐसा अध्यादेश लाने का प्रयास कर रही है जिससे महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर तंग करने वालों को सजा दी जा सके। भारत में भी महिलाओं को घर से बाहर रेल बस या कार्यालय में अपराध मुक्त सुरक्षित वातावरण प्रदान करने के लिए ऐसे कई प्रयासों की जरूरत है। शुरूआत उनकी सुखद यात्रा से ही सही।
(यह लेख 21 अक्तूबर को अमर उजाला में प्रकाशित हुआ है)