Tuesday 17 March 2009

बंद दरवाजों के पीछे


अन्नू आनंद

घर और परिवार दो ऐसे शब्द जो किसी भी व्यक्ति को सुरक्षा और सुकून का अहसास दिलाते हैं। लेकिन जब घर के अपने, भरोसे और प्यार की दीवारों को गिराकर अपनों को ही प्रताड़ित करने लगते हैं तो यही शांति का घरोंदा इतना हिंसक और घिनौना हो जाता है कि उसमें दम घुटने लगता है। लेकिन किसी भी बाहरी व्यक्ति के लिए इस हिंसक माहौल को भेद पाना उतना आसान नहीं क्योंकि घर की चाारदीवारी के भीतर एक सबसे बड़ी दीवार ‘निजता’ की है जिसकी आड़ में अक्सर शारीरिक रूप से ताकतवर कमजोर को अपना निशाना बनाता है। अमूमन ऐसी प्रताड़ना की शिकार महिलाओं को होना पड़ता है क्योंकि वे घर की चारदीवारी के भीतर शारीरिक ताकत में पुरूषों से कमजोर पड़ जाती हंै। मर्द अपनी इसी ताकत का फायदा उठाकर छोटी छोटी बात पर भी अपना गुस्सा मार-पीट से उतारता है। घर और परिवार की इज्जत की खातिर महिला स्वयं बाहर इसकी शिकायत कर नहीं पाती और निजता यानी प्राइवेसी को भेदने का संकोच किसी को इन बंद दरवाजों के भीतर झांकने की इजाजत नहीं देता। परिणामस्वरूप आज हर तीसरी विवाहित महिला घर के भीतर की हिंसा को खमोशी से झेल रही है।
हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संस्था ब्रेकथ्रू ने घरेलू हिंसा के खिलाफ एक ऐसा अभियान शुरू किया है जो लोगों को आस-पड़ोस में हो रही मारपीट के खिलाफ दखल देने को प्रोत्साहित कर रहा है। अभियान के तहत टीवी पर दिखाए जाने वाले ‘बेल(घंटी) बजाओ’ के विज्ञापन इस मिथ को खत्म करने का काम कर रहे हैं कि निजता के नाम पर घर के बंद दरवाजों के पीछे पुरुष महिला से किसी भी प्रकार का हिंसक बर्ताव करने के लिए आजाद है और उसकी चीख चिल्लाहट सुनने के बावजूद पड़ोस उसे निजी मामला मान अनसुना करने के लिए मजबूर।
विज्ञापन में मशहूर अभिनेता बोमन इरानी पड़ोस से चीख-पुकार की आवाज सुन कर उनके दरवाजे की घंटी बजाता है। दरवाजा खोलने पर वह पूछता है कि क्या वह एक फोन कर सकता है? लेकिन उसी समय जेब में पड़ा उसका मोबाइल फोन बज उठता है। लेकिन दरवाजा खोलने वाले पड़ोसी की समझ में आ जाता है कि घंटी बजाने का मकसद क्या था? इसी प्रकार अन्य विज्ञापन में क्रिकेट खेलने वाले बच्चे चिल्लाने की आवाजें सुनते हैं। एक बच्चा जाकर घंटी बजा कर पूछता है क्या उसकी गेंद तो यहां नहीं गिरी लेकिन वास्तव में गेंद उसके हाथ में होती है। दरवाजा खोलने वालाउसका इशारा समझ जाता है।

अभियान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें पुरुषों को हिंसा के खिलाफ सक्रिय होने के लिए प्रेरित किया गया है। अभियान का मकसद यह प्रचारित करना है कि घरेलू हिंसा के खिलाफ मुहिम में पुरुषों की भागीदारी भी सार्थक साबित हो सकती है। ब्रेकथ्रू की कम्युनिकेशन निदेशक सोनाली खान के मुताबिक उन्होंने अभियान के पहले इस मुद्दे पर आम लोगों के विचार जानने के लिए उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में एक सर्वे कराई थी। इस सर्वे से पता चला कि 80 प्रतिशत लोगों का मानना है कि यदि पति अपनी पत्नी को पीटता है तो केवल परिवारवाले ही उसमें दखल दे सकते हैं। इसका मतलब यह है कि लोगों का मानना है कि किसी के घरेलू मामलों में उन्हें दखल देने का कोई अधिकार नहीं। जोकि गलत धारणा है। इसलिए अभियान में आस-पड़ोस के लोगों को किसी भी प्रकार के घरेलू लड़ाई झगड़े में दखल देने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। खान मे मुताबिक, ‘‘इसका मकसद यह है कि हिंसा पर उतारू व्यक्ति यह जान ले कि घर के भीतर भी उसे मारने पीटने की सामाजिक मंजूरी नहीं। अपने घर में अपनों के हाथों पिटने, जलील होने और मर्दी ताकत के आगे घुटने टेक, पुरुष के हर अत्याचार को अपना नसीब मानकर चलने की रिवायत लंबे अरसे से चल रही है। लेकिन खतरे की बात यह है कि इस घिनौनी प्रवृति में दिन-ब-दिन बढ़ोतरी हो रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक वर्ष 2000 में यदि औसतन 12 महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती थीं तो 2005 में इनकी संख्या 160 हो गई।
कुछ समय तक यह आम धारणा थी कि महिलाओं पर हाथ उठाने की घटनाएं केवल अशिक्षित और निम्न वर्ग में अधिक होती हैं। लेकिन आंकड़ों से पता चला कि पत्नी पर बात बात पर हाथ उठाने की प्रवृति केवल निम्न या मध्य वर्ग तक ही सीमित नहीं। बल्कि इनकी संख्या उच्च-मध्यम वर्ग और उच्च या ‘इलीट’ क्लास में भी कम नहीं। इलीट’ क्लास की महिलाएं निम्न वर्ग की अपेक्षा खमोशी से इस शोषण को झेलती है। यहीं नहीं मध्यम और उच्च वर्ग में मारने पीटने के अलावा बात बात पर ताना उलाहनांे से लज्जित कर मानसिक शोषण की घटनाएं भी अधिक देखने में आ रही हैं। अंग्रेजी बोलने वाली, प्रबुद्व और उच्च पदों पर काम करने वाली महिलाएं भी इसकी शिकार हैं। अब जैसे-जैसे इन संपन्न घरों की महिलाएं अपने अनुभवों को बताने लगी है यह धारणा निराधार साबित हो रही है कि घरेलू हिंसा का कारण अशिक्षा, आर्थिक तंगी और जागरूकता की कमी हैं। महिला अधिकारों के प्रति सजग, फिल्मी हस्तियां, माॅडल या ऊंचे ओहदों पर आसीन महिलाएं भी घर परिवार को बचाने की खातिर लंबे समय तक अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों को सहन करती हैं।
अब अंजना(बदला हुआ नाम) के मामले को ही लें। अंजना की दोनों बाजुओं पर नील के बड़े-बड़े दाग थे। उसने डाक्टर को बताया कि कल वह बाथरूम से फिसल गई थी। लेकिन अंजना को डाक्टर के पास लाने वाली उसकी बहन जानती थी कि यह क्रिकेट खेलने वाले बैट के निशान हैं जिससे उसके पति ने कल रात उसकी पिटाई की थी। 40 वर्षीय अंजना मुंबई शहर की एक जानी मानी ईवन्ट कंपनी की मालकिन है। कई पुरुष उसके नीचे काम करते हैं। वह पढ़ी लिखी आर्थिक रूप से संपन्न और उच्च वर्ग से संबंध रखती है। लेकिन पति की इस आदत के खिलाफ वह अपनी छवि बिगड़ने के डर से कुछ भी बोलने को तैयार नहीं ।
सााफिया पूर्वी दिल्ली की झुग्गी बस्ती में रहती है। उसे पति से पिटने की आदत हो चुकी है। कुछ समय पहले साफिया की दाहिनी आंख सूज कर लाल हो चुकी थी। उसे इस आंख से बिल्कुल दिखाई नहीं दे रहा था। उस दिन वह किसी के घर काम पर भी नहीं जा सकी। किसी को क्या बताती? रात को उसके पति ने खाली शराब की बोतल उस पर फेंकी। जो उसकी आंख पर लगी। गनीमत कि वह टूटी नहीं। साफिया अपने शराबी और गुस्सैल पति के ऐसे हमलों की आदी हो चुकी है। क्योंकि जिस झुग्गी बस्ती में रहती है वहां की अधिकतर महिलाओं के लिए घर के पुरुषों की मार सहना एक रूटीन बन चुका है।
सरकारी कंपनी में कार्य करने वाले अभय ने जब सुनंदा से शादी की तो वह एक निजी कंपनी में ब्रांड मैनेजर के पद पर काम कर रही थी लेकिन अपनी मेहनत और योग्यता के बल पर शादी के पांच वर्षों में ही वह एक मल्टी नेशनल कंपनी में ह्नयूमन रिर्सोसज मैनेजर के पद पर पहुंच गई। हमेशा एक कामकाजी पत्नी की चाह रखने वाले अभय से पत्नी की यह तरक्की बरदाश्त नहीं होती। इसी की झल्लाहट वह रोज रात को पत्नी के साथ बलात्कार कर निकालता है। सुनंदा के लिए यह प्रताड़ना झेलना कठिन है, पर किस से कहे।
ऐसी मिसालों की कमी नहीं जो स्पष्ट करती हैं कि हिंसा की प्रवृति किसी भी क्लास, जात या स्तर की सीमा में बंधी नहीं। कुछ समय पहले टीवी सीरियल की चर्चित अभिनेत्री श्वेता तिवारी ने अपने पति राजा के खिलाफ काफी समय तक खमोश रहने के बाद मारपीट करने की शिकायत दर्ज की थी। हाल ही में गायक अदनान सामी की पत्नी ने उसके खिलाफ मारने की शिकायत दर्ज कराई है। हांलाकि देखने में आया है कि सेलिब्रेटी महिलाएं अपनी लोकप्रियता की खातिर ऐसे मामालों को उजागर करने से अधिक संकोच करती हैं। ज्यादातर महिलाएं अभी भी यह मानकर चलती हैं कि पति का पत्नी पर हाथ उठाना अनुचित नहीं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-3 (2006-2007) के मुताबिक 54 प्रतिशत यानी आधी से अधिक पत्नियों का मानना है कि किन्ही विशेष कारणों से पति का पत्नी को पीटना न्यायोचित है। 41 फीसदी महिलाएं मानती हैं कि यदि वे अपने ससुराल वालों का अपमान करती हैं तो पति पीटने के हकदार हैं और 35फीसदी का मानना है कि यदि वे घर या बच्चों की उपेक्षा करती हैं तो पति का पीटना जायज है।
महिलाओं को चारदीवारी के भीतर पुरुषों के वहशी रवैये से निजात दिलाने और घरों के अंदर की हिंसा को कानूनी दायरे में लाने की दृष्टि से अक्तूबर 2006 में ‘‘घरेलू हिंसा से महिलाओं को सुरक्षा अधिनियम-2005’ लागू किया गया है। महिलाओं को घर परिवार में समान हक दिलाने के लिहाज से यह एक बेहद ही सशक्त अधिनियम है इस में पीड़ित महिलाओं के सभी पहलुओं को कवर करने की कोशिश की गई हैै। विधेयक की सबसे बड़ी विषेशता यह भी है कि इस में पीड़ित महिला अपने वैवाहिक घर या जिस घर में वह आरोपी के साथ रह रही थी उसमें रहने की हकदार बनी रहती है। भले ही उस घर में उसका कोई हिस्सा न हो। इस प्रावधान के मुताबिक आरोपी को पीड़िता को घर से निकालने का कोई अधिकार नहीं रहता। अधिनियम सुरक्षा अधिकारियों के माध्यम से पीड़िता को मेडिकल और कानूनी सेवाएं प्रदान करने की सुविधा भी देता है। लेकिन कानून बेहतर होने के बावजूद महिलाओं का इसका लाभ नहीं मिल पा रहा। इसका एक बड़ा कारण इसके अमलीकरण की प्रक्रिया में आने वाली बाधाएं हैं।
पीयूसीएल की उपाध्यक्ष और एडवा के कानूनी सहायता विंग की अध्यक्ष सुधा रामालिंघम मानती है कि महिलाएं इस का फायदा नहीं उठा पा रहीं क्योंकि कानून को लागू करने में संसाधनों की कमी है। घरेलू हिंसा के मामलों से निपटाने के लिए अलग अदालतों और अतिरिक्त न्यायधीशों की जरूरत है। लेकिन जो न्यायधीश अभी इन मामलों का निपटारा करने में लगे हैं उन पर पहले से ही कईं दूसरी जिम्मेदारियां है। घरेलू हिंसा के मामले उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी के रूप में सौंपे जा रहें हैं। कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए पर्याप्त संख्या में सुरक्षा अधिकारी भी मौजूद नहीं है। सेंटर फारॅ सोशल रिसर्च की अध्यक्ष रंजना कुमारी का कहना है न्यायधीशों के पास घरेलू हिंसा के मामलों को देखने के लिए समय ही नहीं और न ही सरकार के पास सुरक्षा अधिकारियों के लिए बजट। इसलिए जो महिलाएं शिकायत करने की हिम्मत भी जुटाती है उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा। उन्होंने बताया घरेलु हिंसा का मामला दर्ज कराने वाली एक पूर्व केंद्रीय मंत्री की पत्नी अदालती आदेश के बावजूद उसके आरोपी पति उसे घर में घुसने नहीं दे रहे। ऐसे में आम महिला के मामले की सुनवाई क्या होगी। पिछले दिनों दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने स्वयं कहा था कि घरेलू हिंसा के मामलों के लिए सुरक्षा अधिकारियों की कमी है। रंजना कुमारी का मानना है कि केवल कानून बनाने से कुछ नहीं होगा उसके अमलीकरण के लिए सरकार को बजट भी बढ़ाना होगा और जागरूकता फैलाने के प्रयासों को प्रोत्साहित करना होगा।

हर राज्य की वही कहानी
महाराष्ट्र की महिला बिहार की महिला से अधिक सुरक्षित नहीं। कहने का अभिप्राय यह है कि घरेलू हिंसा के मामले में शिक्षा, संस्कृति और क्लास में भिन्नता भी पुरूषों के महिलाओं के प्रति नजरिए को अधिक प्रभावित नहीं करती वर्ष 2008 में इंटरनेशनल इंस्टीइयूट आॅफ पापुलेशन साइंसेज और पापुलेशन काउंसिल आॅफ इंडिया ने 6 राज्यों में एक सर्वे कराई। इसमें 15 से 29 साल के 8,502 विवाहित पुरुषों और 13,912 विवाहित महिलाओं से बातचीत की गई। सर्वे के परिणामों के मुताबिक महाराष्ट्र में जब 27 फीसदी महिलाओं ने अपने पतियों के हाथों पिटने की बात को स्वीकारा तो बिहार में 30 फीसदी महिलाएं इसी प्रकार की हिंसा का शिकार हुई थीं। हिंसा की ये घटनाएं केवल अनपढ़ घरों से नहीं बल्कि कामकाजी गैर कामकाजी, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में एक समान दर्ज की गईं थीं।
क्या कहता है कानून
घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005

  • यह अधिनियम मारपीट या मारपीट की धमकी, शारीरिक और यौन हिंसा, मानसिक और आर्थिक शोषण को घरेलू हिंसा के दायरे में मानता है।
  • यह पीड़ित महिला को पति के घर में रहने की सिफारिश करता है। ऽ यह कानून केवल विवाहित पत्नी ही नहीं बल्कि बहन, मां या अन्य महिला संबंधियों को भी सुरक्षा प्रदान करता है। यह बिना विवाह के पुरूष के साथ रहने वाली महिला की सुरक्षा को भी कवर करता है।
  • इसमें आरोपी को एक साल की सजा और 20 हजार के जुर्माने का प्रावधान है।
  • यह कानून पीड़ित महिला को चिक्तिसीय और कानूनी सहायता प्रदान करने की हिदायत भी देता है।

(जनसत्ता में १५ मार्च २००९ को प्रकाशित)

1 comment:

RAJNISH PARIHAR said...

sahi kathan hai aapka....is hinsa ko rokne ke liye kuchh aur pryaas karne ki jarurat hai....