अनसुनी आवाज़ उन लोगों की आवाज़ है जो देश के दूर दराज़ के इलाकों में अपने छोटे छोटे प्रयासों के द्वारा अपने घर, परिवार समुदाय या समाज के विकास के लिए संघर्षरत हैं। देश के अलग अलग हिस्सों का दौरा करने के बाद लिखी साहस की इन कहानियों को मैं अख़बारों और इस ब्लॉग के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना चाहती हूँ क्योंकि ये खामोश योधाओं के अथक संघर्ष की वे कहानियाँ हैं जिनसे सबक लेकर थोड़े से साहस और परिश्रम से कहीं भी उम्मीद की एक नयी किरण जगाई जा सकती है।
Tuesday, 2 December 2008
बस और नहीं
सैकरों मासूम लोगों और देश के सब से वरिष्ठ और जांबाज़ अधिकारियों का मरना सहनशीलता नहीं कायरता और बुज्द्ली की निशानी है । इसलिए यह गर्व करना की हम बड़े सहनशील हैं और कोई भी हमले के बाद भी हम फिर
उसी हौंसले से खरे होने की ताकत रखते हैं का राग अलापना बंद करना होगा। अब आपना होंसला नहीं अपनी ताकत दिखाने की आवश्कता है ताकि बाहरी लोग हमारे घर में घुसकर अब हमारे अपनों को नुक्सान पहुचने की हिम्मत न करे।
मुंबई हमले से देश के राजनेताओं, मीडिया कर्मियों और सरकारी अफसरों को कई सबक सीखने होंगे।
जिस प्रकार से चैनल के रिपोर्टर्स ने इस घटना की लाइव कवरेज की है उस से लगता है की अभी भी हमारा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया काफ़ी इम्मेच्यौर है । लाइव कवरेज को सब से पहले और सब से एक्सक्लूसिव दिखाने के चक्कर में कई चैनल ऐसे दर्शय दिखाते नज़र आए जो की सुरक्षा के लिहाज़ से उचित नहीं कहे जा सकते। एक लोकप्रिय और बेहतर समझे जाने वाले अंग्रेजी चैनल ने ताज के पीछे की लेन में जाकर खंभों के पीछे छुपे सुरक्षा गार्डस पर कैमरा घुमाते हुएय कहा कि आंतकवादी कहीं पीछे से न भाग जाए इसलिए गार्डस ने यहाँ भी पोसिशन ले ली है । जब कैमरा सुरक्षा कर्मी पर घुमा तो वह स्वयं को खम्भे के पीछे छुपाने कि पूरी कोशिश करता रहा। ऐसे एक नहीं कई उदाहरण देखने को मिले जब कई चैनलों ने बेहद ही बचकाना बरताव किया।
घटना का राजनैतिककरण न करने कि दुहाई देने वाला मीडिया ही स्टूडियो में विभिन्न पार्टियों कि प्रतिनेधियों को बुला कर उन कि राजनैतिक प्रतिक्रियों को जानने और एक के बयाँ पर दूसरे कि टिपननी जानने और उन्हे उकसाने कि कोशिश करता रहा। अन्नू आनंद
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